बीकानेर में फ्लॉप हुई पिंक बस टॉयलेट स्कीम, महिलाओं को नहीं मिल रही सुविधाएं

बीकानेर में 84 लाख रु. की लागत से बनी पिंक बस टॉयलेट स्कीम पूरी तरह फ्लॉप, बसें बंद पड़ी और जर्जर हालत में। महिलाओं को मोबाइल टॉयलेट, फीडिंग रूम जैसी सुविधा नहीं मिल रही, प्रशासन पर उठे सवाल।

Aug 4, 2025 - 10:36
Aug 4, 2025 - 10:39
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बीकानेर में फ्लॉप हुई पिंक बस टॉयलेट स्कीम, महिलाओं को नहीं मिल रही सुविधाएं

बीकानेर में फ्लॉप हुई पिंक बस टॉयलेट स्कीम, महिलाओं को नहीं मिल रही सुविधाएं

बीकानेर। [ डिगेश्वर सेन ] बीकानेर में वर्ष 2024 में महिलाओं की सुविधाओं के लिए बड़े प्रचार-प्रसार के साथ लॉन्च की गई पिंक बस टॉयलेट स्कीम इस वक्त पूरी तरह फ्लॉप साबित हो रही है। इन बसों को भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में महिलाओं को मोबाइल टॉयलेट, बेबी फीडिंग रूम और सैनिटरी वेंडिंग मशीन के रूप में स्थापित किया गया था। लेकिन आज बीकानेर नगर निगम की इन पिंक बसों का हाल यह है कि अब बसों पर ताले लगे है और खड़ी-खड़ी जर्जर हालत में पहुंच चुकी हैं और शहर की महिलाओं को इसका कोई फायदा नहीं मिल रहा है।

पिंक बस टॉयलेट वर्ष 2024 में 84 लाख रुपये की लागत से तैयार इस बसों को  संविधान दिवस के मौके पर राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजया रहाटकर ने बीकानेर की महिलाओं को समर्पित की थी। इसकी परिकल्पना और बजट तत्कालीन मेयर सुशीला कंवर राजपुरोहित के कार्यकाल में स्वीकृत हुआ था।

हर पिंक बस में महिलाओं के लिए टॉयलेट, बच्चों के लिए फीडिंग रूम, और सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीन की सुविधा थी—ताकि कामकाजी और बाहर निकलने वाली महिलाओं को आसानी हो।

शहर की महिलाएं शिकायत कर रही हैं कि ये बसें न ही मुख्य ट्रैफिक जंक्शन, बाजार या अस्पताल जैसी जगहों पर लगाई गईं और न ही इनकी मेंटेनेंस सही रही। जिसकी वजह से अब बसें इनका कोई उपयोग नहीं हो रहा है। बसों की नियमित सफाई, रखरखाव और उनमें सामग्री की सप्लाई न होने से बसें जंग खा रही हैं। और अब कैंपस में बंद पड़ी हैं।

महिलाओं का कहना है कि इसे प्रमुख जगहों—जैसे रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, बाजार एवं कार्यालय क्षेत्रों—में लगाया जाता और नियमित सफाई-रखरखाव होता, तो इस स्कीम का लाभ सचमुच जरूरतमंद महिलाओं तक पहुंच पाता।

इस फ्लॉप योजना से यह साफ है कि केवल योजना लॉन्च कर देना और उद्घाटन करना ही पर्याप्त नहीं है, जब तक उसकी स्थायी देखरेख, स्थान चयन और यूज़र फ्रेंडली मैनेजमेंट सुनिश्चित नहीं किया जाए। महिलाओं की ज़रूरतों की असली सुनवाई व समाधान तभी संभव है, जब म्युनिसिपल प्रबंधन इन प्रयासों को धरातल पर ले आए और जनता की फीडबैक के आधार पर इन्हें चलाए।

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